PRATYAHARA: USE THE WORLD LIKE A MIRROR
Pratyahara is not to block your senses. It is not correcting the creation of God by blinding the eyes etc. Pratyahara is awakening to the experience of senses. It is not to abandon joy and happiness. It is about enjoying the world while being awake. You simply have not to carry the debris of your sense experience.
इन्द्रियों को इस दुनिया से विमुख नहीं करना है। आपकी इन्द्रियाँ मूल्यवान हैं स्वयँ ईश्वर ने इन्हें आपको सौंपा है। इन्हें बंद कर देने से ईश्वर का अपमान होगा। ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है। केवल इन इन्द्रियों को जाग कर इस्तेमाल करना है। इनसे दुनिया की खबर सूचनाएँ हासिल करनी हैं और बस। इतना ही करना है। उन सूचनाओं के कूड़ा करकट को भीतर जमा नहीं होने देना है। इतना काफी है यह प्रत्याहार हो जाता है। जब वस्तुएँ सामने हों तो उन्हें देखने, सूँघने, चखने, सुनने और छूने में क्या आपत्ति हो सकती है। उनका उपयोग करो और आगे बढ़ो। रुकना नहीं है।
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